info@sbscolleges.net.in

Sri Basudev Sanskrit College, Akbarpur, Patna

आवश्यक सूचना:- सभी छात्र/छात्राओं को सूचित किया जाता है कि महविद्यालय में ७५% उपस्थिति अनिवार्य है । अन्यथा परीक्षा से बंचित हो सकते है।

महाविद्यालय का इतिहास (College History)

श्री वासुदेव संस्कृत महाविद्यालय के संस्थापक रामानुज संप्रदाय के विशिष्ट  संत शिरोमणि 1008 श्री स्वामी धारणीधराचार्य उर्फ वेदांती जी महाराज विलक्षण प्रतिमा के धनी स्वामी जी बाल काल से ही अपने परम पूज्य गुरु विशिष्टाद्वईत सिद्धांत के तत्वार्थ के ज्ञाता  जगतगुरु  श्री स्वामी वासुदेवाचार्य जी महाराज के परम शिष्यों में से एक गंगा पुत्र भीष्म की भांति ब्रह्मचर्य जीवन-आपन करने का संकल्प लेकर मानव मात्र की सेवा दो प्रकार से करने लगे पहले समाज के वंचित शोषित तथा गरीबों को भोजन वस्त्रादि की सेवा तथा दूसरा संस्कृत विद्यालय की स्थापना कर गुरुकुल परंपरा के अनुसरण करते हुए संस्कृत विद्या का प्रचार प्रसार इसी संस्कृत ज्ञान संबंध हेतु स्वामी जी ने अनेक संस्कृत विद्यालय तथा महाविद्यालय का निर्माण कराया था। उन्ही महाविद्यालय में से यह महाविद्यालय एक है जो कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय कामेश्वर नगर दरभंगा के अधीनस्थ  बिहार सरकार पटना से स्थाई संबद्धता प्राप्त श्री वासुदेव संस्कृत महाविद्यालय अकबरपुर के नाम से प्रसिद्ध है। गंगा नदी के दक्षिणी तट तथा सोन नदी के पूर्वी तट पर अवस्थित यह महाविद्यालय मगध क्षेत्र में वर्षों से ज्ञान का प्रकाश फैला रहा है। इस महाविद्यालय में उत्तर एवं दक्षिण बिहार के छात्र जाकर विद्या अध्ययन करते थे तथा आज भी कर रहे हैं। समाज के रहमों-करम पर चलने वाला इस महाविद्यालय में शताधिक छात्र अध्ययन करते थे आज भी कर रहे हैं।
            विद्यालय अपनी जमीन पर वर्षों से अवस्थित है तथा इसके अतिरिक्त 3 एकड़ जमीन है जो कुछ पैदावार कुछ खेलकूद के लिए महाविद्यालय से पश्चिम दिशा में है। स्थापना काल से ही  स्वामी जी इस महाविद्यालय में ख्याति प्राप्त ज्ञानियों को ही शिक्षक के रूप में रखा करते थे, इसका मूल कारण भारत के दस वेदांतीयों में स्वयं एक थे, अपना प्रचार प्रसार न करना उनका मूल स्वभाव था। इस बात से स्वत: समझ सकते हैं की संस्कृत विश्वविद्यालय में इसी विश्वविद्यालय के अधीनस्थ महाविद्यालय के कार्यरत शिक्षक पहले कुलपति पद प्राप्त करने का गौरव प्राप्त किए ।
             वर्तमान समय में जो शिक्षक हैं वह सब अपने-अपने विषय में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। आज भी इस महाविद्यालय की परंपरा है कि जो छात्र अधिक प्रतिभा संपन्न होते हैं महाविद्यालय परिवार उन्हें बाहर भेज कर आचार्य की पढ़ाई की सहायता करता है।